गुज़रा हुआ ज़माना फिर याद आ रहा है
गुज़रा हुआ ज़माना फिर याद आ रहा है
भूला हुआ फ़साना फिर याद आ रहा है
जो फूल बन गया है होंटों पर उस के आ कर
वो हर्फ़-ए-महरमाना फिर याद आ रहा है
जिस में थे चाँद तारे महबूब थे हमारे
क्यूँ वो निगार-ख़ाना फिर याद आ रहा है
वो दो दिलों को जिस ने हमराज़ कर दिया था
वो राज़-ए-दिल-बराना फिर याद आ रहा है
जिस की बिसात उलट दी ऐ 'सोज़' आसमाँ ने
क्यूँ वो शराब-ख़ाना फिर याद आ रहा है
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