Ghazals of Sardar Soz
नाम | सरदार सोज़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Sardar Soz |
उन को देखा तो तबीअ'त में रवानी आई
तसव्वुरात की दुनिया सजाए बैठे हैं
मैं फ़र्त-ए-मसर्रत से डर है कि न मर जाऊँ
लाख हो माज़ी दामन-गीर
हर इक दिल यहाँ है मोहब्बत से आरी
गुज़रा हुआ ज़माना फिर याद आ रहा है
दर-ए-मय-कदा है खुला हुआ सर-ए-चर्ख़ आज घटा भी है
बुझे चराग़ जलाने में देर लगती है
ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत नहीं मुझे
अफ़्सोस क्या जो हम भी तुम्हारे नहीं रहे