कुछ ऐसा हो कि तस्वीरों में जल जाए तसव्वुर भी
मोहब्बत याद आएगी तो शिकवे याद आएँगे
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मौजा-ए-रेग-ए-रवान-ए-ग़म में बह के देखना
बना देगी ज़मीं को आज शायद आसमाँ बारिश
आज दीवाने का ज़ौक़-ए-दीद पूरा हो गया
वक़्त के सहरा में नंगे पाँव ठहरे हो 'सलीम'
फ़िक्र ओ एहसास के तपते हुए मंज़र तक आ
एक ही ज़िंदा बचा है ये निराला पागल
'ग़ालिब'-ए-दाना से पूछो इश्क़ में पड़ कर सलीम
बादशाहत के मज़े हैं ख़ाकसारी में 'सलीम'
अजब हैं सूरत-ए-हालात अब के
नूर की शाख़ से टूटा हुआ पत्ता हूँ मैं