बादशाहत के मज़े हैं ख़ाकसारी में 'सलीम'
ये नज़ारा यार के कूचे में रह के देखना
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Habib Jalib
Gulzar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(631) Peoples Rate This
आज दीवाने का ज़ौक़-ए-दीद पूरा हो गया
एक ही ज़िंदा बचा है ये निराला पागल
फ़िक्र ओ एहसास के तपते हुए मंज़र तक आ
अजब हैं सूरत-ए-हालात अब के
बढ़ रहे हैं शाम के मौहूम साए चल पड़ो
कभी सुर्ख़ी से लिखता हूँ कभी काजल से लिखता हूँ
वहम जैसी शुकूक जैसी चीज़
कुछ ऐसा हो कि तस्वीरों में जल जाए तसव्वुर भी
'ग़ालिब'-ए-दाना से पूछो इश्क़ में पड़ कर सलीम
बना देगी ज़मीं को आज शायद आसमाँ बारिश