किसी की फिर मिरे दिल पर हुकूमत होती जाती है
किसी की फिर मिरे दिल पर हुकूमत होती जाती है
इलाही कैसी मजबूरी की सूरत होती जाती है
मज़ा देने लगी ऐ 'सोज़' अब बे-ताबी-ए-दिल भी
तबीअत महरम-ए-राज़-ए-मोहब्बत होती जाती है
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किसी की फिर मिरे दिल पर हुकूमत होती जाती है
इलाही कैसी मजबूरी की सूरत होती जाती है
मज़ा देने लगी ऐ 'सोज़' अब बे-ताबी-ए-दिल भी
तबीअत महरम-ए-राज़-ए-मोहब्बत होती जाती है
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