शैख़ चल तू शराब-ख़ाने में
मैं तुझे आदमी बना दूँगा
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न चलो मुझ से तुम रक़ीबो चाल
डराएगी हमें क्या हिज्र की अँधेरी रात
आगे मेरे न तीखी मार ऐ शैख़
जिस का राहिब शैख़ हो बुत-ख़ाना ऐसा चाहिए
काबा को अगर मानें कि अल्लाह का घर है
रौनक़-ए-अहद-ए-जवानी अलविदा'अ
आ किधर है तू साक़ी-ए-मख़मूर
ज़ाहिद मिरी समझ में तो दोनों गुनाह हैं
नाला शब-ए-फ़िराक़ जो कोई निकल गया
किस से दूँ तश्बीह मैं ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल को तिरी
मज़ा देखा किसी को ऐ परी-रू मुँह लगाने का
एक मुद्दत में बढ़ाया तू ने रब्त