फाड़ कर ख़त उस ने क़ासिद से कहा
कोई पैग़ाम ज़बानी और है
Allama Iqbal
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Rahat Indori
Gulzar
Jaun Eliya
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ख़याल-ए-नाफ़ में ज़ुल्फ़ों ने मुश्कीं बाँध दीं मेरी
शैख़ चल तू शराब-ख़ाने में
काली काली घटा बरसती है
ब-जुज़ साया तन-ए-लाग़र को मेरे कोई क्या समझे
ज़ाहिद मिरी समझ में तो दोनों गुनाह हैं
जो तुम्हें याद किया करते हैं
तुम जाओ रक़ीबों का करो कोई मुदावा
आशिक़-मिज़ाज रहते हैं हर वक़्त ताक में
तेरी महफ़िल में जितने ऐ सितम-गर जाने वाले हैं
जिस का राहिब शैख़ हो बुत-ख़ाना ऐसा चाहिए
वुसअ'त-ए-बहर-ए-इश्क़ क्या कहिए
गरेबाँ हम ने दिखलाया उन्हों ने ज़ुल्फ़ दिखलाई