खोला दरवाज़ा समझ कर मुझ को ग़ैर
खा गए धोका मिरी आवाज़ से
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
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Gulzar
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Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
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मज़ा देखा किसी को ऐ परी-रू मुँह लगाने का
हैं बहुत देखे चाहने वाले
जिस का राहिब शैख़ हो बुत-ख़ाना ऐसा चाहिए
आ किधर है तू साक़ी-ए-मख़मूर
देखा किसी का हम ने न ऐसा सुना दिमाग़
रह कर मकान में मिरे मेहमान जाइए
नासेहा आया नसीहत है सुनाने के लिए
तेरी महफ़िल में जितने ऐ सितम-गर जाने वाले हैं
जो तुम्हें याद किया करते हैं
न चलो मुझ से तुम रक़ीबो चाल
ब-जुज़ साया तन-ए-लाग़र को मेरे कोई क्या समझे
पीते हैं जो शराब मस्जिद में