काली घटा कब आएगी फ़स्ल-ए-बहार में
आँखें सफ़ेद हो गईं इस इंतिज़ार में
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नासेहा आया नसीहत है सुनाने के लिए
डराएगी हमें क्या हिज्र की अँधेरी रात
मिरा ये ज़ख़्म सीने का कहीं भरता है सीने से
वुसअ'त-ए-बहर-ए-इश्क़ क्या कहिए
आशिक़-मिज़ाज रहते हैं हर वक़्त ताक में
काबा को अगर मानें कि अल्लाह का घर है
ख़याल-ए-नाफ़ में ज़ुल्फ़ों ने मुश्कीं बाँध दीं मेरी
देखा किसी का हम ने न ऐसा सुना दिमाग़
फाड़ कर ख़त उस ने क़ासिद से कहा
जिस का राहिब शैख़ हो बुत-ख़ाना ऐसा चाहिए
न चलो मुझ से तुम रक़ीबो चाल