गरेबाँ हम ने दिखलाया उन्हों ने ज़ुल्फ़ दिखलाई
हमारा समझे वो मतलब हम उन का मुद्दआ' समझे
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अगर उल्टी भी हो ऐ 'मशरिक़ी' तदबीर सीधी हो
तिरा आना मिरे घर हो गया घर ग़ैर के जाना
ख़याल-ए-नाफ़ में ज़ुल्फ़ों ने मुश्कीं बाँध दीं मेरी
काली काली घटा बरसती है
रौनक़-ए-अहद-ए-जवानी अलविदा'अ
हैं बहुत देखे चाहने वाले
ऐ शैख़ ये जो मानें का'बा ख़ुदा का घर है
मिरा ये ज़ख़्म सीने का कहीं भरता है सीने से
काबा को अगर मानें कि अल्लाह का घर है
लटकते देखा सीने पर जो तेरे तार-ए-गेसू को
इलाही ख़ैर हो वो आज क्यूँ कर तन के बैठे हैं
मज़ा देखा किसी को ऐ परी-रू मुँह लगाने का