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उन बुतों से रब्त तोड़ा चाहिए - सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी कविता - Darsaal

उन बुतों से रब्त तोड़ा चाहिए

उन बुतों से रब्त तोड़ा चाहिए

चाहिए अब उन को थोड़ा चाहिए

क़हबा-ए-दुनिया को छोड़ा चाहिए

रब्त इस लूली से तोड़ा चाहिए

किस ज़बाँ से मोहतसिब तू ने कहा

साग़र-ओ-मीना को तोड़ा चाहिए

ख़ंदा-ज़न है मस्ती-ए-मय-ख़्वार पर

शीशा-ए-सहबा को तोड़ा चाहिए

उस बत-ए-मय ने किया हम को ज़लील

उस की गर्दन को मरोड़ा चाहिए

जी में है सैर-ए-फ़लक को जाएँ हम

बादा-ए-गुल-गूँ का घोड़ा चाहिए

है ख़िरामाँ नाज़ से मौज-ए-नसीम

निकहत-ए-गुल का ये घोड़ा चाहिए

दोनों आँखें क्यूँ न हों दिल को अज़ीज़

आहूओं का मुझ को जोड़ा चाहिए

गर निशान-ए-मंज़िल-ए-जानाँ मिले

फिर क़दम पीछे न मोड़ा चाहिए

एक मुद्दत में बढ़ाया तू ने रब्त

अब घटाना थोड़ा थोड़ा चाहिए

ज़ुल्मत-ए-शब से है ज़ीनत माह की

ज़ुल्फ़ को आरिज़ पे छोड़ा चाहिए

टूटे दिल को मोमिया-ए-लुत्फ़ से

हो अगर तौफ़ीक़ जोड़ा चाहिए

क्यूँ शहीदों का कफ़न होवे सफ़ेद

उन के तन पर लाल जोड़ा चाहिए

है जो फ़िक्र-ए-शाह आ'ली सिलसिला

आलम-ए-म'अनी से जोड़ा चाहिए

कोह तो तेशा से टूटा कोहकन

कोशक-ए-ख़ुसरव भी तोड़ा चाहिए

पड़ गई चक्कर में कश्ती ना-ख़ुदा

अब ख़ुदा पर इस को छोड़ा चाहिए

गर समंद-ए-नाज़ पर तू हो सवार

ज़ुल्फ़ का हाथों में कोड़ा चाहिए

खुल गया मुझ से जो इक बंद-ए-क़बा

बोले उस का हाथ तोड़ा चाहिए

उस की ज़ुल्फ़ों को सपेरा देख ले

गर उसे कालों का जोड़ा चाहिए

गंज-ए-हुस्न उस का है रुख़ और मार ज़ुल्फ़

गंज पर कालों का जोड़ा चाहिए

बाद-पा है अबलक़-ए-चश्म-ए-सियाह

क्या उसे काजल का कोड़ा चाहिए

मारता बुलबुल को है क्यूँ बाग़बाँ

कान गुल का भी मरोड़ा चाहिए

है चमन में आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार

अब दर-ए-ज़िंदाँ को तोड़ा चाहिए

है बहार आई क़बा-ए-गुल से अब

बुलबुलों को लाल जोड़ा चाहिए

गुल भी उन को ख़ार आते हैं नज़र

हासिदों की आँख फोड़ा चाहिए

मैं हूँ आसी मुँह में मेरे वक़्त-ए-नज़अ'

दामन-ए-तर को निचोड़ा चाहिए

रह चुका तन के क़फ़स में ये बहुत

रूह के ताइर को छोड़ा चाहिए

हो अगर न सर में सौदा इश्क़ का

फिर उसे पत्थर से फोड़ा चाहिए

हाथ में ऐ गुल-बदन मेहंदी लगा

पंजा-ए-मर्जां मरोड़ा चाहिए

कौन सी मुश्किल है जो आसाँ न हो

दिल में इस्तिक़्लाल थोड़ा चाहिए

मंज़िल-ए-मुल्क-ए-बक़ा में 'मशरिक़ी'

दामन-ए-नानक न छोड़ा चाहिए

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In Hindi By Famous Poet Sardar Genda Singh Mashriqi. is written by Sardar Genda Singh Mashriqi. Complete Poem in Hindi by Sardar Genda Singh Mashriqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.