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ब-जुज़ साया तन-ए-लाग़र को मेरे कोई क्या समझे - सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी कविता - Darsaal

ब-जुज़ साया तन-ए-लाग़र को मेरे कोई क्या समझे

ब-जुज़ साया तन-ए-लाग़र को मेरे कोई क्या समझे

मिरी सूरत को महफ़िल में वो नक़्श-ए-बोरिया समझे

हम उस को अपने हक़ में आफ़त-ए-जाँ और बला समझे

बुतान-ए-बे-वफ़ा हैं जिन को इक अपनी अदा समझे

कोई क्या ख़ाक राज़-ए-मुश्किल-ए-ज़ात-ए-ख़ुदा समझे

अगर नूर-ए-ख़ुदा को ज़ात-ए-इंसाँ से जुदा समझे

वहाँ जा कर करे गर क़त्ल तू बीमार-ए-हिज्राँ को

तिरे कूचे को अपने हक़ में वो दारुश्शिफ़ा समझे

सियह-बख़्ती पे साया गर हो तेरी ज़ुल्फ़-ए-शब-गूँ का

उसे वो अपने सर पे साया-ए-बाल-ए-हुमा समझे

वही करता है इंसाँ काम जो क़िस्मत कराती है

कोई चाहे उसे समझे रवा या नारवा समझे

लटकते देखा सीने पर जो तेरे तार-ए-गेसू को

उसे दीवाने वहशत में तिरा बंद-ए-क़बा समझे

न हरगिज़ ख़ूँ रुलाये बुलबुलों को बाग़ में ऐ गुल

जो अपने हुस्न को तू ताइर-ए-रंग-ए-हिना समझे

तिरे आईना-ए-रुख़ को सिकंदर देखने आया

तिरी महफ़िल में हम उस को गदा-ए-बेनवा समझे

कोई क्या जानता है किस क़दर बोसे लिए हम ने

समझते हैं हम उस को या हमारा दिल-रुबा समझे

बुतों से हम ने जोड़ा रिश्ता-ए-दिल को वो काफ़िर है

अगर इस रिश्ता को कोई हमारे नारवा समझे

तू जा कर छेड़ गुल को या किसी की ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ को

चल ऐ बाद-ए-सबा तू क्या मिरी नाज़-ओ-अदा समझे

कभी बैठा भी गर देखा उन्हों ने अपने कूचे में

तन-ए-लाग़र को मेरे वो किसी का नक़्श-ए-पा समझे

बयाबाँ में जो आया कोई झोंका बाद-ए-सर-सर का

तिरी हम सर्द-मेहरी से नसीम-ए-जाँ-फ़ज़ा समझे

वही हैं हम बनाया जो हमें हक़ ने नहीं पर्वा

कोई हम को बुरा समझे कोई हम को भला समझे

भले को गर बुरा समझे न हरगिज़ वो बुरा होगा

भला इस में बुरा क्या है बुरे को गर बुरा समझे

है इंसाँ के लिए लाज़िम जहाँ में देख कर चलना

वो है हैवाँ न दिल में जो ज़माने की हवा समझे

अगर उस ने कभी तोड़ा हमारे गौहर-ए-दिल को

हम उस के हक़ में उस के टूटने को मोमिया समझे

पिघल कर शम्अ ख़ुद परवाना को पहले जलाती है

किसी के मोम होने को न कोई मोमिया समझे

गरेबाँ हम ने दिखलाया उन्हों ने ज़ुल्फ़ दिखलाई

हमारा समझे वो मतलब हम उन का मुद्दआ' समझे

ख़ुदा को समझे तुम पत्थर जो पत्थर को ख़ुदा समझे

अगर समझे उसे पत्थर तो फिर तुम उस को क्या समझे

तरीक़-ए-ख़ाकसारी सुल्लम-ए-बाम-ए-बुज़ुर्गी है

उसी को 'मशरिक़ी' इंसाँ जहाँ में कीमिया समझे

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In Hindi By Famous Poet Sardar Genda Singh Mashriqi. is written by Sardar Genda Singh Mashriqi. Complete Poem in Hindi by Sardar Genda Singh Mashriqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.