Ghazals of Sardar Genda Singh Mashriqi
नाम | सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी |
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अंग्रेज़ी नाम | Sardar Genda Singh Mashriqi |
वुसअ'त-ए-बहर-ए-इश्क़ क्या कहिए
उन बुतों से रब्त तोड़ा चाहिए
तुम्हें शब-ए-व'अदा दर्द-ए-सर था ये सब हैं बे-ए'तिबार बातें
तेरी महफ़िल में जितने ऐ सितम-गर जाने वाले हैं
रौनक़-ए-अहद-ए-जवानी अलविदा'अ
रहता है कब इक रविश पर आसमाँ
रह कर मकान में मिरे मेहमान जाइए
नासेहा आया नसीहत है सुनाने के लिए
नाला शब-ए-फ़िराक़ जो कोई निकल गया
मिरा ये ज़ख़्म सीने का कहीं भरता है सीने से
मैं वो आतिश-ए-नफ़स हूँ आग अभी
कुछ बद-गुमानियाँ हैं कुछ बद-ज़बानियाँ हैं
कोई उस से नहीं कहता कि ये क्या बेवफ़ाई है
की मय से हज़ार बार तौबा
काली काली घटा बरसती है
काली घटा कब आएगी फ़स्ल-ए-बहार में
जो तुम्हें याद किया करते हैं
जिस का राहिब शैख़ हो बुत-ख़ाना ऐसा चाहिए
इलाही ख़ैर हो वो आज क्यूँ कर तन के बैठे हैं
हैं बहुत देखे चाहने वाले
देखा किसी का हम ने न ऐसा सुना दिमाग़
बोसा देते हो अगर तुम मुझ को दो दो सब के दो
ब-जुज़ साया तन-ए-लाग़र को मेरे कोई क्या समझे
अगर उल्टी भी हो ऐ 'मशरिक़ी' तदबीर सीधी हो
आ किधर है तू साक़ी-ए-मख़मूर