मैं तुझ से झुक के मिला हूँ मगर ये ध्यान रहे
बड़ा नहीं हूँ मगर तुझ से क़द में कम भी नहीं
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हो लेने दो बारिश हम भी रो लेंगे
ये लफ़्ज़ लफ़्ज़ शोला-बयानी उसी की है
आता रहा हूँ याद मैं उस को तमाम उम्र
हमारी काविश-ए-शेर-ओ-सुख़न बे-कार जाती है
ये बात सच है कि वो ज़िंदगी नहीं मेरी
न जाने कैसी आँधी चल रही है
लफ़्ज़ों का ये ख़ज़ाना तिरे नाम कब हुआ
सुना है धूप को घर लौटने की जल्दी है
ख़त हो कोई किताब हो या दिल का ज़ख़्म हो
ख़ता उस की मुआफ़ी से बड़ी है
ये कैसे मरहले में फँस गया है मेरा घर मालिक
ये ख़ल्क़ सारी हवा मेरे नाम कर देगी