हो लेने दो बारिश हम भी रो लेंगे
दिल में हैं कुछ ज़ख़्म पुराने धो लेंगे
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ये ख़ल्क़ सारी हवा मेरे नाम कर देगी
आसमाँ तू ने छुपा रक्खा है सूरज को कहाँ
ये बात सच है कि वो ज़िंदगी नहीं मेरी
मैं ख़ुद को देखूँ अगर दूसरे की आँखों से
लफ़्ज़ों का ये ख़ज़ाना तिरे नाम कब हुआ
ये कैसे मरहले में फँस गया है मेरा घर मालिक
ख़त हो कोई किताब हो या दिल का ज़ख़्म हो
लाख समझाया मगर ज़िद पे अड़ी है अब भी
आता रहा हूँ याद मैं उस को तमाम उम्र
हमारी काविश-ए-शेर-ओ-सुख़न बे-कार जाती है
सुना है धूप को घर लौटने की जल्दी है