आसमाँ तू ने छुपा रक्खा है सूरज को कहाँ
क्यूँ कलाई में तिरी बंद घड़ी है अब भी
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Gulzar
Anwar Masood
Habib Jalib
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(479) Peoples Rate This
न जाने कैसी आँधी चल रही है
हो लेने दो बारिश हम भी रो लेंगे
ये ख़ल्क़ सारी हवा मेरे नाम कर देगी
लाख समझाया मगर ज़िद पे अड़ी है अब भी
ये बात सच है कि वो ज़िंदगी नहीं मेरी
लफ़्ज़ों का ये ख़ज़ाना तिरे नाम कब हुआ
मैं जिन को ढूँडने निकला था गहरे ग़ारों में
ये कैसे मरहले में फँस गया है मेरा घर मालिक
ख़ता उस की मुआफ़ी से बड़ी है
सुना है धूप को घर लौटने की जल्दी है
मैं ख़ुद को देखूँ अगर दूसरे की आँखों से