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ग़ज़ल कहने में यूँ तो कोई दुश्वारी नहीं होती - सदार आसिफ़ कविता - Darsaal

ग़ज़ल कहने में यूँ तो कोई दुश्वारी नहीं होती

ग़ज़ल कहने में यूँ तो कोई दुश्वारी नहीं होती

मगर इक मसअला ये है कि मेयारी नहीं होती

अगर चेहरा बदलने का हुनर तुम को नहीं आता

तो फिर पहचान की पर्ची यहाँ जारी नहीं होती

समुंदर से तो मजबूरी है उस की रोज़ मिलना है

बहुत चालाक है लेकिन नदी खारी नहीं होती

बताऊँ क्या मुझे मोहतात रहना आ गया कैसे

न जाने मुझ पे क्यूँ वहशत कोई तारी नहीं होती

सिपाही से सिपह-सालार बनना कितना आसाँ है

मगर मजबूर हूँ मैं मुझ से ग़द्दारी नहीं होती

हवा की शर्त हम क्यूँ मानते क्यूँ इस तरह दबते

हमें गर साँस लेने की ये बीमारी नहीं होती

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In Hindi By Famous Poet Sardar Asif. is written by Sardar Asif. Complete Poem in Hindi by Sardar Asif. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.