सदार आसिफ़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सदार आसिफ़
नाम | सदार आसिफ़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Sardar Asif |
ये कैसे मरहले में फँस गया है मेरा घर मालिक
ये बात सच है कि वो ज़िंदगी नहीं मेरी
सुना है धूप को घर लौटने की जल्दी है
मैं तुझ से झुक के मिला हूँ मगर ये ध्यान रहे
मैं ख़ुद को देखूँ अगर दूसरे की आँखों से
कोई शिकवा नहीं हम को किसी से
ख़ता उस की मुआफ़ी से बड़ी है
ख़त हो कोई किताब हो या दिल का ज़ख़्म हो
हो लेने दो बारिश हम भी रो लेंगे
ग़ज़ल कहने में यूँ तो कोई दुश्वारी नहीं होती
आता रहा हूँ याद मैं उस को तमाम उम्र
आसमाँ तू ने छुपा रक्खा है सूरज को कहाँ
ये लफ़्ज़ लफ़्ज़ शोला-बयानी उसी की है
ये ख़ल्क़ सारी हवा मेरे नाम कर देगी
ये झूट है कि बिछड़ने का उस को ग़म भी नहीं
न जाने कैसी आँधी चल रही है
मैं जिन को ढूँडने निकला था गहरे ग़ारों में
लाख समझाया मगर ज़िद पे अड़ी है अब भी
लफ़्ज़ों का ये ख़ज़ाना तिरे नाम कब हुआ
ख़ता उस की मुआफ़ी से बड़ी है
हो लेने दो बारिश हम भी रो लेंगे
हमारी काविश-ए-शेर-ओ-सुख़न बे-कार जाती है
ग़ज़ल कहने में यूँ तो कोई दुश्वारी नहीं होती