दूसरा पहाड़
ये दूसरा पहाड़ था
जहाँ चीज़ों में मेरी उम्र के कुछ हिस्से पड़े थे
मैं यहाँ से कितनी बे-तरतीब गई थी
और मैं अपना दिन गर्द कर के आ रही थी
सारी चीज़ों ने मुझे गले लगाया
मैं ने छोटे जूते छाबड़ी वाले को फ़रोख़्त कर दिए
और सिक्के हैंगर में पड़े छोटे कपड़ों में डाल दिए
मैं आईने के सामने खड़ी हुई
और अपनी आँखों की झुर्रियाँ गिनने लगी
आग पर परिंदे सेंकने लगी
तो भूक मेरी एड़ी से डर निकली
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