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आधा कमरा - सारा शगुफ़्ता कविता - Darsaal

आधा कमरा

उस ने इतनी किताबें चाट डालीं

कि उस की औरत के पैर काग़ज़ की तरह हो गए

वो रोज़ काग़ज़ पे अपना चेहरा लिखता और गंदा होता

उस की औरत जो ख़ामोशी काढ़े बैठी थी

काग़ज़ों के भूँकने पर सारतर के पास गई

तुम रैम्बो और फ़्राइड से भी मिल आए हो क्या

सैफ़ू मेरी सैफ़ू मीराबाई की तरह मत बोलो

मैं समझ गई अब उस की आँखें

कीट्स की आँखें हुई जाती हैं

मैं जो सोहनी का घड़ा उठाए हुए थी

अपना नाम लैला बता चुकी थी

मैं ने कहा

लैला मजमे की बातें मेरे सामने मत दोहराया करो

तन्हाई भी कोई चीज़ होती है

शेक्सपियर के ड्रामों से चुन चुन कर उस ने ठुमके लगाए

मुझे तन्हा देख कर

सारतर फ़्राइड के कमरे में चला गया

वो अपनी थ्योरी से गिर गिर पड़ता

मैं समझ गई उस की किताब कितनी है

लेकिन बहर हाल सारतर था

और कल को मजमे में भी मिलना था

मैं ने भीड़ की तरफ़ इशारा किया तो बोला

इतने सारे सार्त्रों से मिल कर तुम्हें क्या करना है

अगर ज़ियादा ज़िद करती हो तो अपने वारिस 'शाह'

हीर सय्याल के कमरों में चले चलते हैं

सारतर से इस्तिआरा मिलते ही

मैं ने एक तन्क़ीदी नशिस्त रक्खी

मैं ने आधा कमरा भी बड़ी मुश्किल से हासिल किया था

सो पहले आधे फ़्राइड को बुलाया

फिर आधे रैम्बो को बुलाया

आधी आधी बात पूछनी शुरूअ की

जॉन डन क्या कर रहा है

सैकेंड हैंड शाइरों से नजात चाहता है

चोरों से सख़्त नालाँ है

दाँते इस वक़्त कहाँ है

वो जहन्नम से भी फ़रार हो चुका है

उस को शुबहा था

वो ख़्वाजा-सराओं से ज़ियादा देर मुक़ाबला नहीं कर सकता

अपने पस-मंज़र में

एक कुत्ता मुसलसल भूँकने के लिए छोड़ गया है

इस कुत्ते की ख़सलत क्या है

बियातर्चे की याद में भूँक रहा है

तुम्हारा तसव्वुर क्या कहता है

सार्त्रों की तसव्वुर के लिहाज़ से

अब उस का रुख़ गोएटे के घर की तरफ़ हो गया है

बाक़ी आधे कमरे में क्या हो रहा है

लड़कियाँ

क्या हर्फ़ चुन रही हैं

इस्तिआरे के लिहाज़ से

हराम के बच्चे गिन रही हैं

लड़कियों के नाम क़ाफ़िए की वजह से

सारतर ज़ियादा नहीं रख पा रहा है

इस लिए उन की ग़ज़ल छोटी पड़ रही है

ज़मीन के लिहाज़ से नक़्क़ाद

अपने कमरों से उखड़ने के लिए तय्यार नहीं

लेकिन उन्हों ने वादा किया है

सारे थिंकर इकट्ठे होंगे

और बताएँगे कि सोसाइटी किया है

और क्यूँ है

वैसे हवाओं का काम है चलते फिरते रहना

दूर-अँदेश की आँख कैसी है

सिगरेट के कश से बड़ी है

वो घड़े से पत्थर निकाल कर गिन रहे थे

और कह रहे थे मैं इस घड़े का बानी हूँ

चाय के साथ ग़ीबत के केक

ज़रूरी होते हैं

और चुग़ल-ख़ोरी की किताब का दीबाचा

हर शख़्स लिखता है

ज़बानों में बुझे तीरों से मक़्तूल ज़िंदा हो रहे हैं

बड़ा इबलाग़ है

सोसाइटी के चेहरे पे वो ज़बान चलती है

कि एक एक बंदे के पास

किताबों की रियासत बंदे से ज़ियादा है

रियासत में

महारानियों के क़िस्से घड़ने पर

इल्म की बड़ी मिलती है

बिल के सादा-काग़ज़ पर

इल्म लिख दिया जाता है

ताज़ा दरयाफ़्त पर

हर फ़र्द की मुट्ठी गर्म होती है

पहले ये बताओ झुझुने की तारीख़-ए-पैदाइश क्या है

मैं कोई नक़्क़ाद हूँ जो तारीख़ दोहराता फिरूँ

किसी का कलाम पढ़ लो

तारीख़ मालूम हो जाएगी

तुम्हारी आँखों में आँसू

'मीर' की किताब का दीबाचा लिखना है

ये किस की पट्टी है

नक़्क़ाद भाई की

ये किस की आँख है

मुझे तो सैफ़ू भाभी की मालूम हो रही है

और ये हाथ

ग़ालिब का लगता है

बकते हो

ज़र की अमान पाऊँ तो बताऊँ

जितने नाम याद थे बता दिए

लेकिन तुम्हारा तसव्वुर क्या कहता

मैं दुम हिलाने के सिवा क्या कर सकता हूँ

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In Hindi By Famous Poet Sara Shagufta. is written by Sara Shagufta. Complete Poem in Hindi by Sara Shagufta. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.