सुनने वाले रो दिए सुन कर मरीज़-ए-ग़म का हाल
देखने वाले तरस खा कर दुआ देने लगे
Parveen Shakir
Gulzar
Ahmad Faraz
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Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
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ज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा था
आधी से ज़ियादा शब-ए-ग़म काट चुका हूँ
बला से हो पामाल सारा ज़माना
कहाँ तक जफ़ा हुस्न वालों की सहते
दीदा-ए-दोस्त तिरी चश्म-नुमाई की क़सम
ये आह-ओ-फ़ुग़ाँ क्यूँ है दिल-ए-ज़ार के आगे
कहने को मुश्त-ए-पर की असीरी तो थी मगर
कौन इन लाखों अदाओं में मुझे प्यारी नहीं
न आसमान है साकित न दिल ठहरता है
वस्ल की उम्मीद बढ़ते बढ़ते थक कर रह गई
मिलता जो कोई टुकड़ा इस चर्ख़-ए-ज़बरजद में
बू-ए-गुल फूलों में रहती थी मगर रह न सकी