सोने वालों को क्या ख़बर ऐ हिज्र
क्या हुआ एक शब में क्या न हुआ
Javed Akhtar
Gulzar
Rahat Indori
Parveen Shakir
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(571) Peoples Rate This
बला से हो पामाल सारा ज़माना
अपने दिल-ए-बेताब से मैं ख़ुद हूँ परेशाँ
जिस शख़्स के जीते जी पूछा न गया 'साक़िब'
न आसमान है साकित न दिल ठहरता है
वस्ल की उम्मीद बढ़ते बढ़ते थक कर रह गई
मैं नहीं कहता कि दुनिया को बदल कर राह चल
आधी से ज़ियादा शब-ए-ग़म काट चुका हूँ
चल ऐ हम-दम ज़रा साज़-ए-तरब की छेड़ भी सुन लें
इबरत-ए-दहर हो गया जब से छुपा मज़ार में
मिलता जो कोई टुकड़ा इस चर्ख़-ए-ज़बरजद में
ज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा था