जिस शख़्स के जीते जी पूछा न गया 'साक़िब'
उस शख़्स के मरने पर उट्ठे हैं क़लम कितने
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Gulzar
Wasi Shah
Anwar Masood
Rahat Indori
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(620) Peoples Rate This
सोने वालों को क्या ख़बर ऐ हिज्र
सुनने वाले रो दिए सुन कर मरीज़-ए-ग़म का हाल
इबरत-ए-दहर हो गया जब से छुपा मज़ार में
मैं नहीं कहता कि दुनिया को बदल कर राह चल
कहने को मुश्त-ए-पर की असीरी तो थी मगर
कहाँ तक जफ़ा हुस्न वालों की सहते
यूँ अकेला दश्त-ए-ग़ुर्बत में दिल-ए-नाकाम था
बला से हो पामाल सारा ज़माना
आप उठ रहे हैं क्यूँ मिरे आज़ार देख कर
उस के सुनने के लिए जम'अ हुआ है महशर
ये आह-ओ-फ़ुग़ाँ क्यूँ है दिल-ए-ज़ार के आगे
आधी से ज़ियादा शब-ए-ग़म काट चुका हूँ