चल ऐ हम-दम ज़रा साज़-ए-तरब की छेड़ भी सुन लें
अगर दिल बैठ जाएगा तो उठ आएँगे महफ़िल से
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ये आह-ओ-फ़ुग़ाँ क्यूँ है दिल-ए-ज़ार के आगे
किस नज़र से आप ने देखा दिल-ए-मजरूह को
हिज्र की शब नाला-ए-दिल वो सदा देने लगे
बू-ए-गुल फूलों में रहती थी मगर रह न सकी
वस्ल की उम्मीद बढ़ते बढ़ते थक कर रह गई
कहने को मुश्त-ए-पर की असीरी तो थी मगर
सोने वालों को क्या ख़बर ऐ हिज्र
मुट्ठियों में ख़ाक ले कर दोस्त आए वक़्त-ए-दफ़्न
कहाँ तक जफ़ा हुस्न वालों की सहते
न आसमान है साकित न दिल ठहरता है
अपने दिल-ए-बेताब से मैं ख़ुद हूँ परेशाँ
बला से हो पामाल सारा ज़माना