आप उठ रहे हैं क्यूँ मिरे आज़ार देख कर
दिल डूबते हैं हालत-ए-बीमार देख कर
Jaun Eliya
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Allama Iqbal
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Wasi Shah
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Parveen Shakir
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सुनने वाले रो दिए सुन कर मरीज़-ए-ग़म का हाल
ये आह-ओ-फ़ुग़ाँ क्यूँ है दिल-ए-ज़ार के आगे
जिस शख़्स के जीते जी पूछा न गया 'साक़िब'
किस नज़र से आप ने देखा दिल-ए-मजरूह को
उस के सुनने के लिए जम'अ हुआ है महशर
बू-ए-गुल फूलों में रहती थी मगर रह न सकी
न आसमान है साकित न दिल ठहरता है
चल ऐ हम-दम ज़रा साज़-ए-तरब की छेड़ भी सुन लें
इबरत-ए-दहर हो गया जब से छुपा मज़ार में
मैं नहीं कहता कि दुनिया को बदल कर राह चल
सोने वालों को क्या ख़बर ऐ हिज्र
हिज्र की शब नाला-ए-दिल वो सदा देने लगे