न आसमान है साकित न दिल ठहरता है
न आसमान है साकित न दिल ठहरता है
ज़माना नाम गुज़रने का है गुज़रता है
वो मेरी जान का दुश्मन सही मगर सय्याद
मिरी कही हुई बातों पे कान धरता है
हमीं हैं वो जो उमीद-ए-फ़ना पे जीते हैं
ज़माना ज़िंदगी-ए-बे-बक़ा पे मरता है
अभी अभी दर-ए-ज़िंदाँ पे कौन कहता था
उधर से हट के चलो कोई नाले करता है
वही सुकूत से इक उम्र काटने वाला
जो सुनने वाला हो कोई तो कह गुज़रता है
हरीफ़ बज़्म में छेड़ा करें मगर 'साक़िब'
वो दिल जो बैठ गया हो कहीं उभरता है
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