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कहाँ तक जफ़ा हुस्न वालों की सहते - साक़िब लखनवी कविता - Darsaal

कहाँ तक जफ़ा हुस्न वालों की सहते

कहाँ तक जफ़ा हुस्न वालों की सहते

जवानी जो रहती तो फिर हम न रहते

लहू था तमन्ना का आँसू नहीं थे

बहाए न जाते तो हरगिज़ न बहते

वफ़ा भी न होता तो अच्छा था वअ'दा

घड़ी दो घड़ी तो कभी शाद रहते

हुजूम-ए-तमन्ना से घुटते थे दिल में

जो मैं रोकता भी तो नाले न रहते

मैं जागूँगा कब तक वो सोएँ गे ता-कै

कभी चीख़ उठ्ठूँगा ग़म सहते सहते

बताते हैं आँसू कि अब दिल नहीं है

जो पानी न होता तो दरिया न बहते

ज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा था

हमीं सो गए दास्ताँ कहते कहते

कोई नक़्श और कोई दीवार समझा

ज़माना हुआ मुझ को चुप रहते रहते

मिरी नाव इस ग़म के दरिया में 'साक़िब'

किनारे पे आ ही लगी बहते बहते

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In Hindi By Famous Poet Saqib Lakhnavi. is written by Saqib Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Saqib Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.