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न कर तो ऐ दिल मजबूर आह-ए-ज़ेर-ए-लबी - साक़िब कानपुरी कविता - Darsaal

न कर तो ऐ दिल मजबूर आह-ए-ज़ेर-ए-लबी

न कर तो ऐ दिल मजबूर आह-ए-ज़ेर-ए-लबी

न टूट जाए कहीं ये सुकूत-ए-नीम-शबी

ये काविश-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ है इश्क़ का हासिल

रवा नहीं तिरी फ़ुर्क़त में आरज़ू-तलबी

ख़ुदा करे यहीं रुक जाए गर्दिश-ए-दौराँ

है राज़दार-ए-मोहब्बत सुकूत-ए-नीम-शबी

कहाँ हुआ है तू शिकवा-गुज़ार-ए-महरूमी

जहाँ है साँस भी लेना कमाल-ए-बे-अदबी

नुमूद-ए-हुस्न है गोया सराब का आलम

ये काएनात है हंगामा हाए बुलअजबी

दिखा रहा हूँ नशेब-ओ-फ़राज़ आलम के

मगर ये दिल है कि है महव-ए-इंतिहा-तलबी

मुझे भी फ़ख़्र है इस सिलसिले में ऐ 'साक़िब'

ख़ुदा का शुक्र कि हूँ हाशमी-ओ-मुत्तलबी

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In Hindi By Famous Poet Saqib Kanpuri. is written by Saqib Kanpuri. Complete Poem in Hindi by Saqib Kanpuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.