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मैं मसरूर हूँ उस से महजूर हो कर - साक़िब कानपुरी कविता - Darsaal

मैं मसरूर हूँ उस से महजूर हो कर

मैं मसरूर हूँ उस से महजूर हो कर

कि मुझ से मिला वो बहुत दूर हो कर

तिरी शान-ए-जिद्दत-पसंदी के क़ुर्बां

कि मुख़्तार ठहरा मैं मजबूर हो कर

वो शक्लें जो दिल में कभी जल्वा-गर थीं

नज़र आएँ बर्क़ सर-ए-तूर हो कर

उठा डाले सारे हिजाबात मैं ने

शराब-ए-मोहब्बत से मख़मूर हो कर

उमीदों की दुनिया न हो जाए वीराँ

फ़रेब-ए-तजस्सुस न दे दूर हो कर

जो मिलना न 'साक़िब' से तुम चाहते थे

तो क्यूँ उस को आवाज़ दी दूर हो कर

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In Hindi By Famous Poet Saqib Kanpuri. is written by Saqib Kanpuri. Complete Poem in Hindi by Saqib Kanpuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.