ये क्या तिलिस्म है क्यूँ रात भर सिसकता हूँ
वो कौन है जो दियों में जला रहा है मुझे
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मैं अपनी आँखों से अपना ज़वाल देखता हूँ
रेत की सूरत जाँ प्यासी थी आँख हमारी नम न हुई
नए चराग़ जला याद के ख़राबे में
ख़ामुशी छेड़ रही है कोई नौहा अपना
सोच में डूबा हुआ हूँ अक्स अपना देख कर
मुझे समझने की कोशिश न की मोहब्बत ने
मिरा अकेला ख़ुदा याद आ रहा है मुझे
एक सुअर से
तर्ग़ीब
हैरानी में हूँ आख़िर किस की परछाईं हूँ
वो दुख जो सोए हुए हैं उन्हें जगा दूँगा
जान प्यारी थी मगर जान से बे-ज़ारी थी