ये कैसी बात हुई है कि देख कर ख़ुश है
वो आँसुओं के समुंदर के दरमियान मुझे
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मुझ को मिरी शिकस्त की दोहरी सज़ा मिली
नामों का इक हुजूम सही मेरे आस-पास
लोग लम्हों में ज़िंदा रहते हैं
उस के वारिस नज़र नहीं आए
शेर-इमदाद-अली का मेडक
वो मिरी रूह की उलझन का सबब जानता है
मुझे ख़बर थी मिरा इंतिज़ार घर में रहा
रूह में रेंगती रहती है गुनह की ख़्वाहिश
मैं एक रात मोहब्बत के साएबान में था
जो तेरे दिल में है वो बात मेरे ध्यान में है
ख़ुदा के वास्ते मौक़ा न दे शिकायत का
एक दिन ज़ेहन में आसेब फिरेगा ऐसा