उस के वारिस नज़र नहीं आए
शायद उस लाश के पते हैं बहुत
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वो दुख जो सोए हुए हैं उन्हें जगा दूँगा
मुझे ख़बर थी मिरा इंतिज़ार घर में रहा
बाहर के असरार लहू के अंदर खुलते हैं
मस्ताना हीजड़ा
मिरा अकेला ख़ुदा याद आ रहा है मुझे
मेरी आँखों में अनोखे जुर्म की तज्वीज़ थी
बाकिरा
एक कुत्ता नज़्म
1
मुझे गुनाह में अपना सुराग़ मिलता है
हिरास फैल गया है ज़मीन-दानों में
अब घर भी नहीं घर की तमन्ना भी नहीं है