तुम और किसी के हो तो हम और किसी के
और दोनों ही क़िस्मत की शिकायत नहीं करते
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Rahat Indori
Parveen Shakir
Gulzar
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
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बदन चुराते हुए रूह में समाया कर
यहीं कहीं पे कभी शोला-कार मैं भी था
बद-गुमानी
ख़ाक नींद आए अगर दीदा-ए-बेदार मिले
शहर का शहर हुआ जान का प्यासा कैसा
नए चराग़ जला याद के ख़राबे में
मैं एक रात मोहब्बत के साएबान में था
ख़ाक मैं उस की जुदाई में परेशान फिरूँ
ख़्वाब को दिन की शिकस्तों का मुदावा न समझ
बाहर के असरार लहू के अंदर खुलते हैं
पार्टी