क़त्ल करने का इरादा है मगर सोचता हूँ
तू अगर आए तो हाथों में झिजक पैदा हो
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उस के वारिस नज़र नहीं आए
हमला-आवर कोई अक़ब से है
मैं तेरे ज़ुल्म दिखाता हूँ अपना मातम करने के लिए
वक़्त अभी पैदा न हुआ था तुम भी राज़ में थे
बुझे लबों पे है बोसों की राख बिखरी हुई
ख़ुदा के वास्ते मौक़ा न दे शिकायत का
दर्द के इताब ले दोस्त उसे शुमार कर
अभी नज़र में ठहर ध्यान से उतर के न जा
मुझे गुनाह में अपना सुराग़ मिलता है
मेरी आँखों में अनोखे जुर्म की तज्वीज़ थी
रात अपने ख़्वाब की क़ीमत का अंदाज़ा हुआ
हमल-सरा