मुझ को मिरी शिकस्त की दोहरी सज़ा मिली
तुझ से बिछड़ के ज़िंदगी दुनिया से जा मिली
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आग हो दिल में तो आँखों में धनक पैदा हो
मिट्टी थी ख़फ़ा मौज उठा ले गई हम को
एक सुअर से
ये कैसी बात हुई है कि देख कर ख़ुश है
सुर्ख़ चमन ज़ंजीर किए हैं सब्ज़ समुंदर लाया हूँ
मैं किसी जवाज़ के हिसार में न था
ख़ुदा के वास्ते मौक़ा न दे शिकायत का
मैं एक रात मोहब्बत के साएबान में था
एक एक कर के लोग बिछड़ते चले गए
वक़्त अभी पैदा न हुआ था तुम भी राज़ में थे
बाहर के असरार लहू के अंदर खुलते हैं