मुझ में सात समुंदर शोर मचाते हैं
एक ख़याल ने दहशत फैला रक्खी है
Allama Iqbal
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मौत की ख़ुशबू
फैंटेसी
मैं ने चाहा था कि अश्कों का तमाशा देखूँ
तुम और किसी के हो तो हम और किसी के
बदन चुराते हुए रूह में समाया कर
एक एक कर के लोग बिछड़ते चले गए
हमारी तबाही में कुछ उस का एहसाँ भी है
सफ़र की धूप में चेहरे सुनहरे कर लिए हम ने
मुर्दा-ख़ाना
रेत की सूरत जाँ प्यासी थी आँख हमारी नम न हुई
मैं वो हूँ जिस पे अब्र का साया पड़ा नहीं
नए चराग़ जला याद के ख़राबे में