मुद्दत हुई इक शख़्स ने दिल तोड़ दिया था
इस वास्ते अपनों से मोहब्बत नहीं करते
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बुझे लबों पे है बोसों की राख बिखरी हुई
साए का सफ़र
मुहासबा
नौहा
वो दुख जो सोए हुए हैं उन्हें जगा दूँगा
अजब कि सब्र की मीआद बढ़ती जाती है
सोच में डूबा हुआ हूँ अक्स अपना देख कर
मेरी आँखों में अनोखे जुर्म की तज्वीज़ थी
बदन चुराते हुए रूह में समाया कर
मिट जाएगा सेहर तुम्हारी आँखों का
पोस्टर
ये किस ने भरम अपनी ज़मीं का नहीं रक्खा