मिरा अकेला ख़ुदा याद आ रहा है मुझे
ये सोचता हुआ गिरजा बुला रहा है मुझे
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एक दिन ज़ेहन में आसेब फिरेगा ऐसा
मस्ताना हीजड़ा
बाद-ए-निस्याँ है मिरा नाम बता दो कोई
रात अपने ख़्वाब की क़ीमत का अंदाज़ा हुआ
छुप के मिलने आ जाए रौशनी की जुरअत क्या
लोग लम्हों में ज़िंदा रहते हैं
ये क्या तिलिस्म है क्यूँ रात भर सिसकता हूँ
दुनिया
ख़ाक मैं उस की जुदाई में परेशान फिरूँ
मुझे समझने की कोशिश न की मोहब्बत ने
पाम के पेड़ से गुफ़्तुगू
डस्टबिन