मैं उन से भी मिला करता हूँ जिन से दिल नहीं मिलता
मगर ख़ुद से बिछड़ जाने का अंदेशा भी रहता है
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उम्र इंकार की दीवार से सर फोड़ती है
प्यास बढ़ती जा रही है बहता दरिया देख कर
रेत की सूरत जाँ प्यासी थी आँख हमारी नम न हुई
मैं तो ख़ुदा के साथ वफ़ादार भी रहा
दुनिया पे अपने इल्म की परछाइयाँ न डाल
तुझ से मिलने का रास्ता बस एक
सदमा
अलकुबड़े
मिट्टी थी ख़फ़ा मौज उठा ले गई हम को
अभी नज़र में ठहर ध्यान से उतर के न जा
ख़ुदा के वास्ते मौक़ा न दे शिकायत का
पाँव मारा था पहाड़ों पे तो पानी निकला