मैं तो ख़ुदा के साथ वफ़ादार भी रहा
ये ज़ात का तिलिस्म मगर टूटता नहीं
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बाद-ए-निस्याँ है मिरा नाम बता दो कोई
मुहासबा
मिट्टी थी ख़फ़ा मौज उठा ले गई हम को
दिल ही अय्यार है बे-वज्ह धड़क उठता है
अजनबी
नामों का इक हुजूम सही मेरे आस-पास
सदमा
मैं वही दश्त हमेशा का तरसने वाला
सफ़र की धूप में चेहरे सुनहरे कर लिए हम ने
तुझे ख़बर है तुझे याद क्यूँ नहीं करते
हैं सेहर-ए-मुसव्विर में क़यामत नहीं करते
नए चराग़ जला याद के ख़राबे में