मैं अपनी आँखों से अपना ज़वाल देखता हूँ
मैं बेवफ़ा हूँ मगर बे-ख़बर न जान मुझे
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Habib Jalib
Gulzar
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(476) Peoples Rate This
वो सख़ी है तो किसी रोज़ बुला कर ले जाए
पोस्टर
उस के वारिस नज़र नहीं आए
तौजीह
तर्ग़ीब
वहशत दीवारों में चुनवा रक्खी है
ख़ुदा के वास्ते मौक़ा न दे शिकायत का
रात नादीदा बलाओं के असर में हम थे
हिरास फैल गया है ज़मीन-दानों में
मैं वही दश्त हमेशा का तरसने वाला
उम्र इंकार की दीवार से सर फोड़ती है
ख़ामुशी छेड़ रही है कोई नौहा अपना