मगर उन सीपियों में पानियों का शोर कैसा था
समुंदर सुनते सुनते कान बहरे कर लिए हम ने
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वो आग हूँ कि नहीं चैन एक आन मुझे
रात अपने ख़्वाब की क़ीमत का अंदाज़ा हुआ
डस्टबिन
मुझ में सात समुंदर शोर मचाते हैं
मुझे ख़बर थी मिरा इंतिज़ार घर में रहा
हद-बंदी-ए-ख़िज़ाँ से हिसार-ए-बहार तक
बाद-ए-निस्याँ है मिरा नाम बता दो कोई
मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला
इक याद की मौजूदगी सह भी नहीं सकते
ख़ाक नींद आए अगर दीदा-ए-बेदार मिले
मिरा अकेला ख़ुदा याद आ रहा है मुझे
एक सुअर से