हादसा ये है कि हम जाँ न मोअत्तर कर पाए
वो तो ख़ुश-बू था उसे यूँ भी बिखर जाना था
Mohsin Naqvi
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Habib Jalib
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Wasi Shah
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अब घर भी नहीं घर की तमन्ना भी नहीं है
वक़्त अभी पैदा न हुआ था तुम भी राज़ में थे
पाँव मारा था पहाड़ों पे तो पानी निकला
मेरे अंदर उसे खोने की तमन्ना क्यूँ है
मौत ने पर्दा करते करते पर्दा छोड़ दिया
दर्द के इताब ले दोस्त उसे शुमार कर
एक सुअर से
मैं अपनी आँखों से अपना ज़वाल देखता हूँ
डस्टबिन
मगर उन सीपियों में पानियों का शोर कैसा था
तौजीह