इक याद की मौजूदगी सह भी नहीं सकते
ये बात किसी और से कह भी नहीं सकते
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मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला
वो ख़ुदा है तो मिरी रूह में इक़रार करे
मैं तेरे ज़ुल्म दिखाता हूँ अपना मातम करने के लिए
ख़ुदा के वास्ते मौक़ा न दे शिकायत का
इक रात हम ऐसे मिलें जब ध्यान में साए न हों
मेरे अंदर उसे खोने की तमन्ना क्यूँ है
मुझे गुनाह में अपना सुराग़ मिलता है
मैं ने चाहा था कि अश्कों का तमाशा देखूँ
रास्ता दे कि मोहब्बत में बदन शामिल है
ये कैसी बात हुई है कि देख कर ख़ुश है
तेरे चेहरे पे उजाले की सख़ावत ऐसी
मैं एक रात मोहब्बत के साएबान में था