दुनिया पे अपने इल्म की परछाइयाँ न डाल
ऐ रौशनी-फ़रोश अंधेरा न कर अभी
Allama Iqbal
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प्यास बढ़ती जा रही है बहता दरिया देख कर
नौहा
तुझे ख़बर है तुझे याद क्यूँ नहीं करते
उम्र इंकार की दीवार से सर फोड़ती है
तौजीह
ख़्वाब को दिन की शिकस्तों का मुदावा न समझ
मेरे अंदर उसे खोने की तमन्ना क्यूँ है
वो ख़ुश-ख़िराम कि बुर्ज-ए-ज़वाल में न मिला
रूह में रेंगती रहती है गुनह की ख़्वाहिश
मगर उन सीपियों में पानियों का शोर कैसा था
मैं तेरे ज़ुल्म दिखाता हूँ अपना मातम करने के लिए
मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला