बुझे लबों पे है बोसों की राख बिखरी हुई
मैं इस बहार में ये राख भी उड़ा दूँगा
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शेर-इमदाद-अली का मेडक
जो तेरे दिल में है वो बात मेरे ध्यान में है
1
हैरानी में हूँ आख़िर किस की परछाईं हूँ
मैं एक रात मोहब्बत के साएबान में था
तेरे चेहरे पे उजाले की सख़ावत ऐसी
रात नादीदा बलाओं के असर में हम थे
सफ़र की धूप में चेहरे सुनहरे कर लिए हम ने
वो दुख जो सोए हुए हैं उन्हें जगा दूँगा
मैं किसी जवाज़ के हिसार में न था
मेरी आँखों में अनोखे जुर्म की तज्वीज़ थी
ख़ामुशी छेड़ रही है कोई नौहा अपना