याद की दीवार है
दीवार पर एक पोस्टर
और पोस्टर में कामनी...
सब्ज़ आँखें
बे-कराँ आँखें तिरी
कल्बा-ए-निस्यान में
और बर्फ़ के तूफ़ान में
धुँदली हुईं, ख़ाली हुईं
ये फ़ना के गर्म बोसों के निशाँ
जल गया मिट्टी का रस
राएगाँ सब राएगाँ
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फैंटेसी
मिरा अकेला ख़ुदा याद आ रहा है मुझे
बाकिरा
हैरानी में हूँ आख़िर किस की परछाईं हूँ
ख़ाक मैं उस की जुदाई में परेशान फिरूँ
मेरी आँखों में अनोखे जुर्म की तज्वीज़ थी
साए का सफ़र
पाम के पेड़ से गुफ़्तुगू
ख़्वाब को दिन की शिकस्तों का मुदावा न समझ
दर्द के इताब ले दोस्त उसे शुमार कर
दीवार
एक सुअर से