रात जमाइयाँ ले रही है
वस्ल की सीपी जिस्म से
गुहर फूट रहे हैं
एक अजनबी लड़की
आँखों में आँखें डाले
नंगी और उकड़ूँ बैठी हुई है
वो चमन की आन है
और जान उस की
रात की रानी में रहती है
सोच रहा हूँ
मैं उस की अलमारी में
अपने आप को तह कर के रख दूँ
Parveen Shakir
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मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला
तुझ से मिलने का रास्ता बस एक
मौत ने पर्दा करते करते पर्दा छोड़ दिया
वो आग हूँ कि नहीं चैन एक आन मुझे
डस्टबिन
ख़ाक नींद आए अगर दीदा-ए-बेदार मिले
सब कुछ न कहीं सोग मनाने में चला जाए
इक रात हम ऐसे मिलें जब ध्यान में साए न हों
मैं अपनी आँखों से अपना ज़वाल देखता हूँ
जो तेरे दिल में है वो बात मेरे ध्यान में है
मौत की ख़ुशबू
एक एक कर के लोग बिछड़ते चले गए