जो हो सके तो एक रोज़
ए'तिबार के अज़ाब से गुज़ार दे मुझे
कि एहतिमाल और है
सिफ़र नहीं तो फिर सिफ़र से जंग क्या
ख़ुदा के वास्ते मुझे बता
अगर किसी का इंतिज़ार ही न था
तो सारी उम्र किस के इंतिज़ार में गुज़र गई
जमाल-ख़ाँ-अचक-ज़ई
मेरा सवाल और है
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आग हो दिल में तो आँखों में धनक पैदा हो
कैमरा
एक दिन ज़ेहन में आसेब फिरेगा ऐसा
मुझे समझने की कोशिश न की मोहब्बत ने
नए चराग़ जला याद के ख़राबे में
रूह में रेंगती रहती है गुनह की ख़्वाहिश
मिरा अकेला ख़ुदा याद आ रहा है मुझे
तर्ग़ीब
वो ख़ुदा है तो मिरी रूह में इक़रार करे
मेरी आँखों में अनोखे जुर्म की तज्वीज़ थी
दर्द पुराना आँसू माँगे आँसू कहाँ से लाऊँ
बद-गुमानी