शरह-ए-ग़म हाए बे-हिसाब हूँ मैं
शरह-ए-ग़म हाए बे-हिसाब हूँ मैं
लिखने बैठूँ तो इक किताब हूँ मैं
मेरी बर्बादियों पे मत जाओ
उन निगाहों का इंतिख़ाब हूँ मैं
ख़्वाब था या शबाब था मेरा
दो सवालों का इक जवाब हूँ मैं
मदरसा मेरा मेरी ज़ात में है
ख़ुद मोअल्लिम हूँ ख़ुद किताब हूँ मैं
जी रहा हूँ इस आब-ओ-ताब के साथ
कैसे आसूदा-ए-शबाब हूँ मैं
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